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प्रदोष व्रत की सम्पूर्ण जानकारी – पंडित प्रदीप मिश्रा

 Pradosh Vrat प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है. सूर्यास्त होने के बाद और रात्रि शुरू से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है. अलग-अलग शहरों में सूर्यास्त का समय भी अलग-अलग होता है, इसीलिए प्रदोष काल दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं. --------------------------------------------------

पितृपक्ष के दौरान घर में पूजा करना सही है या गलत है? क्या है मान्यता?

इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो चुकी है,  पितृपक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक रहता है. इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हों चुके है. पितृ पक्ष के दौरान पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध कर्म, पिंडदान आदि करते हैं. लेकिन, पितरों को प्रसन्न करने के दौरान घर के भगवान का ध्यान अवश्य रखना चाहिए. उनकी अवहेलना बिलकुल भी नही करनी चाहिए.

हमारे धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, पितृ पक्ष में किसी तरह का शुभ अथवा मांगलिक कार्य करना पूर्णतया वर्जित है. पितृपक्ष में पितरों को विशेष पूजनीय माना गया है. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितर धरती पर आते हैं. ऐसी स्थिति में पितरों की विधि विधान पूर्वक पूजा करना अत्यंत कल्याणकारी होता है. लेकिन, पितृपक्ष के दौरान घर में स्थापित देवी-देवताओं की पूजा किस तरह करनी चाहिए. क्या उनकी पूजा करने के तरीके में कोई परिवर्तन करना चाहिए, आइए जानते हैं.

घर में स्थापित देवी-देवताओं की पूजा में ऐसा करें

 ज्योतिषी पंडित शिव कुमार जी बताते हैं कि 29 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पितृपक्ष के 15 दिन सनातन धर्म को मानाने वाले प्रत्येक सनातनी के जीवन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि पितृपक्ष के 15 दिनों में पितरों को प्रसन्न किया जाता है. और उनको प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष उपाय किए जाते हैं. पितृपक्ष के दौरान पितर पूज्यनीय तो होते हैं. लेकिन, इस दौरान घर में स्थापित देवी-देवताओं की सेवा करना बिल्कुल भी न भूलें. रोज की तरह भगवान की सेवा करें, भगवान को स्नान कराएं, उनका शृंगार करें और पूरे मनोयोग से उनकी पूजा करें.

यह भी ध्यान रखें
उन्होंने आगे बताया कि जिस तरह से हम साल के बाकी दिनों में रोज सुबह अपने घर में भगवान की पूजा करते हैं, उसी तरह ही हम भगवान की आराधना करते रहें. पितृपक्ष के दौरान घर या मंदिर में भगवान की पूजा करने के बाद पितरों का स्मरण जरूर करना चाहिए. जब भगवान को भोग लगाएं तब भी पितरों का स्मरण करें. बार-बार स्मरण करने से पितर प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा भगवान का भोग लगाने के साथ ही कुत्ता और कौवा के लिए भोजन जरूर निकालें तथा कुत्ता और कौवा के साथ ही अन्य पक्षियों को भी भोजन ग्रहण करवाएं.

इन बातों का विशेष ध्यान रखें
यदि आपके घर में पितरों की तस्वीरें है तो उन तस्वीरों को घर के देवी-देवताओं की तस्वीरों के साथ नहीं लगाना चाहिए. क्योकि पितरों की भगवान से समानता नही होती है. इसके अलावा मंदिर में भी पितरों की तस्वीरों को स्थान नहीं देना चाहिए. अगर आप ऐसा करते हैं तो पितर नाराज होते हैं. और आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है. इसके अलावा,अगर आप देवी-देवताओं की पूजा नही करते है तो पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान इत्यादि करने  का फल भी नहीं मिलता है, इसलिए पितृपक्ष के समय प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद नित्य की तरह देवी देवताओं की पूजा अवश्य करनी चाहिए. पितृपक्ष में देवी देवताओं की पूजा करना अत्यंत शुभ माना गया है.

टिप्पणियाँ

A.K. Shukla ने कहा…
बहुत ही अच्छी जानकारी दी है

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